लेखनी प्रतियोगिता -14-Jun-2024" ग़ज़ल "

ग़ज़ल

पा कर भी तुझे पाने की ललक दिल में रह गई बाक़ी। 

मोहब्बत में कहीं आज़माइश की गुंजाइश रह गई बाक़ी ।।


तकते तकते राहों को आहट की भनक रह गई बाक़ी।

तेरी चाहत की आस में मेरी फ़ुर्क़त कहीं रह गई बाक़ी।।


चादर की सिलवटों में तन्हाई की कसक रह गई बाक़ी।

जलती हुई रात में शब- ए- हिज्र की आह रह गई बाक़ी।।

मधु गुप्ता "अपराजिता"



 


   2
1 Comments

shweta soni

20-Jun-2024 04:15 PM

👌👌

Reply